पूजा उत्सव 2025 – आस्था, संस्कृति और एकजुटता का पर्व ✨🌸🪔
दुर्गा पूजा ने एक बार फिर शहर को आस्था, भक्ति और उत्सव के रंगों से सराबोर कर दिया है। सुबह की पूजा-अर्चना से लेकर देर रात तक पंडाल घूमने का सिलसिला लगातार जारी है। पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा, सांस्कृतिक गर्व और सामूहिक उल्लास से भर गया है।
इस वर्ष भी शहर के विभिन्न पंडालों में भारी भीड़ उमड़ी है—परिवार, बच्चे और बुजुर्ग नए-नए रंगीन परिधानों में सजे-धजे उत्सव के आनंद में डूबे दिखाई दे रहे हैं। भीड़ को नियंत्रित करने और सबको सुरक्षित रूप से उत्सव का अनुभव दिलाने के लिए पुलिसकर्मी और स्वयंसेवक निरंतर प्रयासरत हैं।

दुर्गा पूजा अच्छाई की बुराई पर विजय का शाश्वत प्रतीक है, जब मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर धर्म की रक्षा की। भव्य थीम पर आधारित पंडाल, जगमगाती एलईडी लाइटें, भक्तिमय संगीत, और ढाक-शंख की गूंज इस पर्व को विशेष बना देती हैं। इसके साथ ही सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, नृत्य (कुछ क्षेत्रों में गरबा सहित) और व्यंजनों की सुगंध वातावरण को और भी आकर्षक बना देती है।
इस बार कई पंडाल अपनी अनूठी थीम और कलाकारी से विशेष आकर्षण का केंद्र बने। हरमू बाज़ार, गढ़ीखाना और बकरी बाज़ार ने विश्व के सबसे बड़े हिंदू मंदिर—कंबोडिया स्थित अंगकोरवाट—की प्रतिकृति बनाई है। वहीं, राजस्थान मित्र मंडल ने शिक्षा के महत्व पर आधारित प्रेरणादायी थीम प्रस्तुत की है। हर पंडाल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक सकारात्मक सामाजिक संदेश भी देता है।

मां दुर्गा और उनके दिव्य परिवार—सरस्वती, लक्ष्मी, गणेश और कार्तिकेय—की प्रतिमाएँ देखने योग्य हैं। बंगाल से आए शिल्पकारों द्वारा गढ़ी गईं ये प्रतिमाएँ इतनी जीवंत प्रतीत होती हैं मानो स्वयं मां दुर्गा भक्तों से संवाद कर रही हों। महत्वपूर्ण बात यह है कि अब कई कलाकार बांस, नारियल के रेशे, मिट्टी और कपड़े जैसे पर्यावरण अनुकूल सामग्री का उपयोग कर रहे हैं, जिससे इस पर्व में स्थिरता का संदेश भी जुड़ रहा है।
महाषष्ठी के दिन दुर्गा बाड़ी में पुरोहितों ने पूजा की औपचारिक शुरुआत की। शाम होते-होते मां को नए परिधानों से सजाया गया और प्रतिमा को पारंपरिक अलंकरणों से सुसज्जित किया गया, जिससे भक्ति और उत्सव के दिनों की शुरुआत हुई।

कोलकाता की दुर्गा पूजा पहले ही यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर में शामिल हो चुकी है और इसकी गूंज अन्य क्षेत्रों में भी सुनाई देती है। डिजिटल नवाचार, थीम आधारित कलाकारी और सांस्कृतिक विविधता के संगम ने पंडालों को पूजा स्थल के साथ-साथ रचनात्मकता और सामुदायिक भावना का केंद्र बना दिया है।
इस रविवार का सुहावना मौसम उत्साह को और बढ़ा गया। हजारों लोग सड़कों और पंडालों में उमड़ पड़े। ढाक की थाप, शंखनाद और भक्तों का उल्लासपूर्ण नृत्य मिलकर एक अद्भुत वातावरण का निर्माण कर रहे थे। स्वयंसेवक और पुलिसकर्मी भीड़ को संभालने में पूरी निष्ठा से लगे रहे और सुनिश्चित किया कि हर कोई सुरक्षित रूप से पर्व का आनंद ले।

इस पर्व ने स्थानीय व्यवसायों को भी नई गति दी। ठेला-फेरी वाले, ऑटो रिक्शा चालक और खाद्य विक्रेता सभी को अच्छी आमदनी हुई। लोग टिक्की चाट, समोसा चाट, लिट्टी-चोखा, पाव भाजी और अन्य स्वादिष्ट व्यंजनों का भरपूर आनंद ले रहे थे। सचमुच, दुर्गा पूजा उतना ही साझा भोजन और हंसी-खुशी का पर्व है जितना आस्था और भक्ति का।
राजधानी अब पूरी तरह पूजा के उल्लास में डूबी हुई है—सड़कों पर रंगीन रोशनी की बहार, लोग उत्सव की डोर में बंधे हुए और भक्ति में ऊँचाई तक उठता हुआ जन-मन।
पाठ एवं चित्र: अशोक करण
📸 ब्लॉग: ashokkaran.blogspot.com
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