मैक्लुस्कीगंज
की यात्रा: एक मिटता सपना और एकता का प्रतीक
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मेरे
सहयोगी, जो हमेशा कुछ
नया खोजने को उत्सुक रहते
हैं, मुझसे ज़ोर देकर कहने
लगे कि मैं उनके
कार्यक्रम में शामिल होऊं
— गंतव्य था मैक्लुस्कीगंज। एक समय
में चहल–पहल से
भरा यह कस्बा, जो
अब एक छिपा हुआ
रत्न है, कभी लगभग
400 एंग्लो–इंडियन परिवारों का घर हुआ
करता था।
उत्सुकतावश मैंने अपनी कार तैयार
की और हम निकल
पड़े एक सप्ताहांत साहसिक
यात्रा पर।
यह कहानी 1933 से शुरू होती
है जब टी.ई.
मैक्लुस्की नामक एक ब्रिटिश
व्यापारी ने छोटानागपुर के
महाराजा से 10,000 एकड़ भूमि लीज
पर ली। उन्होंने एंग्लो–इंडियनों के लिए एक
स्वप्निल बस्ती की कल्पना की
थी, लेकिन समय के साथ
बुनियादी सुविधाओं की कमी के
कारण यह सपना बिखरने
लगा। आज वहां केवल
13 परिवार ही रह गए
हैं।
हमारी
ड्राइव काफी खूबसूरत रही।
रास्ते में हमने रांची
से लगभग 25 किमी दूर स्थित
रातू महाराजा का भव्य महल देखा, जो दुर्गा पूजा
के समय खासा जीवंत
रहता है। लगभग 45 किमी
और आगे, ढुल्ली गांव के पास,
एक दृश्य ने हमें पूरी
तरह मोह लिया — एक
हिंदू मंदिर और एक मस्जिद,
जो एक–दूसरे के
समानांतर खड़े हैं। यह
स्थान “सर्वधर्म स्थल“ के रूप में
जाना जाता है — सभी
धर्मों के लिए समर्पित
एक अनूठा स्थान।
घने
जंगल के बीच इन
शांतिपूर्ण संरचनाओं की वास्तुकला ने
हमें रोक लिया। माना
जाता है कि इस
स्थल को बनाने वाले
ने यहाँ एक चर्च
और एक गुरुद्वारा भी
शुरू किया था, पर
दुर्भाग्यवश वे अधूरे रह
गए।
हालाँकि
यहाँ खाने–पीने की
दुकानें या रेस्टोरेंट नहीं
हैं, लेकिन इस जगह की
शांति एक आदर्श सुकून
देती है। एक टिफिन
या पिकनिक बास्केट साथ लेकर आएं
और किसी बरगद के
नीचे बैठकर उस शांति को
महसूस करें।
अगर आप रुकने की
योजना बना रहे हैं,
तो पहले से होम–स्टे बुक करें।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट सीमित है — रांची से
खेलारी होते हुए मैक्लुस्कीगंज
के लिए कुछ बसें
ही चलती हैं। इसलिए
अपनी निजी गाड़ी ले
जाना ज्यादा बेहतर विकल्प होगा।
मैक्लुस्कीगंज
एक ओर जहां एक
बुझते सपने की झलक
देता है, वहीं “सर्वधर्म
स्थल” के ज़रिये एकता
और समरसता का शक्तिशाली संदेश
भी देता है।
दो दिन की योजना
बनाएं और इस अद्वितीय
धार्मिक सौहार्द के प्रतीक को
ज़रूर देखें।
फोटो
विवरण —
- सर्वधर्म स्थल का चित्र
- मैक्लुस्कीगंज परिसर का चित्र
- मैक्लुस्कीगंज परिसर का चित्र
पाठ
और चित्र – अशोक करन





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