मनीहारी
घाट: एक मनोहारी द्वार जो अब भी विकास की प्रतीक्षा में
📍 कटिहार (बिहार) से साहिबगंज (झारखंड) तक गंगा की लहरों पर एक ऐतिहासिक यात्रा
✍️
लेखक एवं फ़ोटोग्राफ़र: अशोक करन
🔗
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🌊 परिचय: यात्रा जो बनी एक अनुभव
मेरे
कार्यवश पूर्वी झारखंड के साहिबगंज की यात्राएं प्रायः
समान और दोहरावभरी होती
थीं। लेकिन एक दिन, एक
नई राह ने मेरे
सफ़र को एक नई
दिशा दी—बिहार के कटिहार ज़िले में स्थित मनीहारी
घाट से गंगा पार
करते हुए स्टीमर द्वारा साहिबगंज पहुँचने का अवसर मिला।
करीब
दो घंटे की यह जलयात्रा न केवल गंगा
की शांति और सुंदरता को
महसूस करने का अवसर
बनी, बल्कि यह मुझे उस
ऐतिहासिक धरोहर से भी जोड़
गई जिसे हम आज
भूलते जा रहे हैं।
🚢 आज भी नावों के भरोसे: एक बुनियादी सुविधा का अभाव
आज भी मनीहारी घाट से साहिबगंज तक कोई स्थायी
पुल नहीं है। यात्रियों
को छोटे नावों या
स्टीमर से ही पार
जाना पड़ता है। यह
दशकों पुरानी समस्या है, जो यहाँ
के स्थानीय नागरिकों के जीवन को
आज भी कठिन बनाती
है।
🎬 सिनेमा का ऐतिहासिक गवाह
यह घाट केवल एक
यातायात बिंदु ही नहीं, बल्कि
भारतीय सिनेमा के इतिहास का भी गवाह है। 1950 और 60 के दशक में
यहां कई भोजपुरी और
हिंदी फिल्मों की शूटिंग हुई।
खासकर बिमल रॉय की कालजयी फिल्म
“बंदिनी”
(1963) का एक यादगार दृश्य
यहीं शूट हुआ था।
फिल्म में अशोक कुमार अपनी पत्नी नूतन
से मिलने के लिए स्टीमर
से नदी पार करते
हैं और पृष्ठभूमि में
एस.डी. बर्मन की भावपूर्ण आवाज़
में अमर गीत बजता
है:
🎵 “ओ रे मंझी, मेरे साजन हैं उस पार…”
आज भी मनीहारी रेलवे
स्टेशन की दीवारों पर
इस फिल्म के दृश्य लगे
हुए हैं।
🌍 परिवर्तन और क्षरण: समय का असर
समय
के साथ मनीहारी घाट
के आसपास का भौगोलिक परिदृश्य बदल चुका है।
- कटाव ने जमीन को बुरी तरह प्रभावित किया है।
- बरसात में कीचड़ और दलदल घाट को लगभग अप्रवेशनीय बना देते हैं।
- घाट की सीढ़ियों और सौंदर्यीकरण के लिए अनेक प्रस्ताव आए पर क्रियान्वयन नहीं हुआ।
🛤️ इतिहास में इसकी भूमिका
ब्रिटिश
काल में, यह घाट एक
प्रमुख व्यापारिक केंद्र था।
स्टीमर सेवा झारखंड की तंग गलियों
से होकर मनीहारी तक
चलती थी।
फिल्मनिर्माताओं के लिए यह
एक पसंदीदा लोकेशन बन गया था।
🏗️ एक नई शुरुआत: पुल का सपना साकार
अप्रैल
2017 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक 6 किलोमीटर
लंबे पुल की आधारशिला रखी,
जो झारखंड के साहिबगंज को बिहार के
मनीहारी घाट से जोड़ेगा।
यह चार लेन का पुल अब लगभग पूरा
हो चुका है और उद्घाटन की प्रतीक्षा में है।
इस पुल के बनने
से न केवल लोगों
को आवागमन में राहत मिलेगी,
बल्कि यह क्षेत्र आर्थिक
और सांस्कृतिक रूप से पुनर्जीवित हो सकेगा।
📸 चित्र विवरण
राजमहल
(साहिबगंज ज़िला) में स्टीमर और
हाथ से चलाई जाने
वाली नावें खड़ी हैं।
🙏 अंत में…
मनीहारी
घाट केवल एक भौगोलिक
बिंदु नहीं, बल्कि हमारी साझा विरासत, संस्कृति और इतिहास का साक्षी है।
यह आवश्यक है कि ऐसे
ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण और
विकास हो, ताकि भविष्य
की पीढ़ियाँ भी इन अनुभवों
से जुड़ सकें।
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