गुदगुदाती नन्ही परी – आनंद का खज़ाना 💕👶
कुछ वर्ष पहले हमें यह हर्षित समाचार मिला कि हमारे परिवार में एक नए सदस्य का आगमन हुआ है — हम दादा–दादी बन गए! यह हम सबके लिए अपार खुशी और उत्सव का पल था। हमारी नन्ही राजकुमारी का प्रेम और उत्साह के साथ हार्दिक स्वागत किया गया। जल्द ही हम उसे देखने पटना पहुँच गए, और जैसे ही हमारी नज़र उस पर पड़ी, दिल पिघल गया। वह बेहद प्यारी थी, ऊन जैसी मुलायम, और उसके बदलते भाव सबका ध्यान खींच लेते थे — सचमुच सबकी आँखों का तारा।
आज, उसके जन्मदिन पर, मैं यह अनमोल तस्वीर साझा कर रहा हूँ। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में यह सामान्य धारणा है कि जब कोई शिशु हँसता है तो मानो वह भगवान से संवाद कर रहा हो। परिवारजन हँसी–मजाक, मज़ेदार चेहरे और इशारों से उसका जवाब देते हैं, जिससे घर का वातावरण हँसी और प्रेम से गूंज उठता है।
मुस्कान के पीछे का विज्ञान 😊
आम तौर पर, बच्चे लगभग चार महीने की उम्र से गुदगुदाकर हँसना शुरू करते हैं, जब वे चेहरे के भाव, स्पर्श और अपने माता–पिता व प्रियजनों के साथ भावनात्मक जुड़ाव को पहचानना सीखते हैं। इस दौरान वे अपने आसपास को आत्मसात करते हैं, स्नेह का प्रत्युत्तर देते हैं और शुरुआती रिश्ते बनाते हैं। गुदगुदी से निकली हँसी हर समय नहीं आती — यह तभी प्रकट होती है जब बच्चा सुरक्षित, सहज और परिचित हाथों के कोमल स्पर्श में होता है।
जन्म के 6 से 12 हफ़्तों के बीच बच्चे मुस्कुराना शुरू करते हैं, स्वाभाविक रूप से लोगों को पहचानते हैं और अपनी आँखों व हरकतों के ज़रिये खुशी या आराम का भाव व्यक्त करते हैं।
मैंने उसकी हँसी कैसे कैद की 📸
यह विशेष तस्वीर तब ली गई थी जब वह मात्र एक महीने की थी — 13 सितंबर को जन्मी, और 13 अक्टूबर को मैंने यह चित्र लिया। वह खिड़की के पास शांत भाव से सो रही थी, जिस पर धुंधला शीशा था और सूरज की किरणें उसके चेहरे पर नरम अंदाज़ में पड़ रही थीं। उसके माथे पर हल्की शिकन थी। मैंने परिवार के एक सदस्य से कहा कि खिड़की पर सफेद कपड़ा (जैसे धोती) टाँग दें, जिससे धूप मुलायम होकर फैली और उसके चारों ओर एक कोमल आभा बन गई। वह तुरंत सहज हो गई और मुस्कुराने लगी।
उस पल को और ख़ास बनाने के लिए मैंने कुछ फूल और सुंदर सा हेडगियर मंगवाया। जैसे ही उसे उसके सिर पर सजाया गया, वह खिलखिलाकर हँस पड़ी।
अपने Canon EOS 7D और 100mm f/2.8 मैक्रो लेंस से मैंने नज़दीकी तस्वीर लेने की तैयारी की। उसे एक बड़े सफेद तौलिये पर रखा, अपर्चर f/3.5, शटर स्पीड 1/250 और ISO 200 सेट किया, जिससे बैकग्राउंड हल्का धुँधला हुआ और उसका चेहरा साफ फोकस में आया। हाई–स्पीड सर्वो पर 8 fps में मैंने लगातार कई फ्रेम लिए — जिनमें मुस्कान, गुदगुदी भरी हँसी, रोना — सब कैद हुआ, जो बचपन की मासूमियत और पवित्रता का प्रतीक है।
यह उन्हीं में से एक अनमोल पल आपके लिए प्रस्तुत है।
📷 लेख व फोटो: अशोक करण
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