सिंदूर खेला 2025 – रंगों, परंपरा और एकता का उत्सव ✨🌸🔴
हाल ही सम्पन्न दुर्गा पूजा के दौरान मुझे रांची स्थित दुर्गा बाड़ी में बंगाली महिलाओं द्वारा आयोजित सिंदूर खेला अनुष्ठान को कैमरे में कैद करने का अवसर मिला। यह हर वर्ष विजयादशमी के पावन अवसर पर मनाया जाता है, जब हजारों बंगाली महिलाएँ रांची के मेन रोड स्थित दुर्गा बाड़ी मंदिर में एकत्रित होती हैं। इस अनुष्ठान में विवाहित महिलाएँ माँ दुर्गा की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाती हैं और फिर एक-दूसरे के माथे व गालों पर सिंदूर लगाती हैं। सफेद लाल बॉर्डर वाली साड़ियों में सजी ये महिलाएँ पूरे मंदिर परिसर को हंसी, खुशी और भक्ति के रंगों से भर देती हैं।

बंगाली हिंदू परंपरा में निहित यह अनुष्ठान केवल माँ दुर्गा को विदाई देने का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह सहृदय बहनापे, दांपत्य निष्ठा, समृद्धि और बुरी शक्तियों से रक्षा का भी प्रतीक है। विवाहित महिलाएँ अपने परिवार की मंगलकामना करती हैं, मिठाइयाँ बांटती हैं, ढाक की धुनों पर नृत्य करती हैं और माँ दुर्गा के आशीर्वाद का उल्लासपूर्वक उत्सव मनाती हैं।

ऐसा माना जाता है कि लगभग 400 वर्ष पूर्व बंगाल और बांग्लादेश में आरंभ हुआ यह उत्सव आज सीमाओं को पार कर चुका है। अब यह न केवल पूर्वी भारत में बल्कि विश्वभर में जहाँ भी बंगाली समुदाय है, वहाँ धूमधाम से मनाया जाता है। वर्षों के साथ यह केवल परंपरा नहीं रहा बल्कि नारी शक्ति और सामूहिक आनंद का उत्सव बन गया है, जिसमें कई जगहों पर पुरुष और अविवाहित लड़कियाँ भी शामिल होते हैं।

सिंदूर का भी गहरा महत्व है—यह अनंत प्रेम, निष्ठा, समृद्धि और माँ पार्वती की रक्षक शक्ति का प्रतीक है। विवाह के समय होने वाला सिंदूर दान स्त्री के वैवाहिक जीवन में प्रवेश का पावन चिन्ह है और हिंदू परंपरा के सबसे स्थायी सांस्कृतिक प्रतीकों में से एक है।

सिंदूर खेला का प्रत्यक्ष अनुभव करना परंपरा की शक्ति और महिलाओं के बीच अटूट बंधन को देखना है—एक ऐसा दृश्य जिसमें हंसी, आशीर्वाद और लाल रंगों की छटा फैली होती है। यदि आपने इसे अभी तक अनुभव नहीं किया है तो इसे अपनी सांस्कृतिक बकेट लिस्ट में अवश्य शामिल करें—यह सचमुच आस्था, एकता और नारी शक्ति का उत्सव है।
📸 & ✍️ टेक्स्ट और फोटो: अशोक करन
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