नाम की ताकत: वास्को डी गामा से बिरसा मुंडा तक

 

नाम
की ताकत: वास्को डी गामा से बिरसा मुंडा तक
#VascoDaGama #FortKochi #BirsaMunda #CulturalIdentity #KeralaTourism
#JharkhandHeritage #HistoryAndTravel
📖
देखें: ashokkaran.blogspot.com

केरल
के फोर्ट कोच्चि की सुरम्य गलियों
में घूमते हुए, मैंने एक
बात स्पष्ट रूप से महसूस
कीवास्को डी गामा का
नाम यहां हर ओर
छाया हुआ है। गेस्ट
हाउसों और रेस्टोरेंट्स से
लेकर स्थानीय दुकानों और वाहनों तक,
उनका नाम हर जगह
दिखाई देता है।

मैं
यहां अपने मलयाली मित्र
शाजी के आमंत्रण पर
आया था, जिन्होंने
सिर्फ अपनी कार दी,
बल्कि एक स्थानीय गाइड
की भी व्यवस्था की।
गाइड ने बताया कि
वास्को डी गामा का
इस क्षेत्र में ऐतिहासिक महत्व
है और यहां के
लोग उनकी विरासत से
जुड़कर गर्व महसूस करते
हैं।

यह दृश्य मुझे मेरे गृहनगर
रांची (झारखंड) की याद दिला
गया, जहां भगवान बिरसा
मुंडा का नाम लोगों
के जीवन में रचाबसा है। बिरसा
मुंडा चौक, बस स्टैंड, बाज़ार और दुकानेंहर
जगह उनका नाम सम्मान
और श्रद्धा से लिया जाता
है। झारखंड के आदिवासी समुदायों
में उन्हें एक आज़ादी के सेनानी के रूप में
पूजा जाता है।

जैसे
फोर्ट कोच्चि में वास्को डी
गामा को इतिहास से
आगे बढ़कर एक विरासत के
प्रतीक के रूप में
सम्मान मिलता है, वैसे ही
रांची में बिरसा मुंडा
को आदर और श्रद्धा
दी जाती है।


वास्को
डी गामा की विरासत

वास्को
डी गामा एक पुर्तगाली
कुलीन, खोजकर्ता और नौसेना प्रमुख
थे, जिन्हें समुद्र मार्ग से भारत पहुँचने
वाले पहले यूरोपीय के
रूप में जाना जाता
है। सन् 1497 में पुर्तगाल के
राजा मैनुएल प्रथम के आदेश पर
उन्होंने भारत के समुद्री
मार्ग की खोज के
लिए यात्रा शुरू की।

20 मई,
1498
को उनका जहाज़ केरल
के कालीकट (अब कोझिकोड) के तट पर
पहुँचा, जो उन्होंने Cape of Good Hope के रास्ते पार
किया था।

उनकी
इस यात्रा ने यूरोप और
एशिया को समुद्री मार्ग
से जोड़ने का एक नया
युग शुरू किया और
आगे चलकर भारतीय उपमहाद्वीप
में यूरोपीय उपनिवेशवाद की नींव रखी।

उनके
आगमन पर कालीकट के
ज़मोरिन ने उन्हें पुर्तगाल
का राजदूत मानकर स्वागत किया। उनकी यह यात्रा
भारतीय तटीय क्षेत्रों में
पुर्तगाली प्रभाव के लिए द्वार
खोलने वाली साबित हुई।


ऐतिहासिक
योगदान

सन्
1505 में फ्रांसिस्को डी अल्मेडा को पुर्तगाली भारत
का पहला वायसराय नियुक्त
किया गया।
वास्को डी गामा ने
अपने समुद्री यात्राओं का विस्तृत दस्तावेज़
तैयार किया, जिसमें अफ्रीका और भारत के
तटवर्ती क्षेत्रों की संस्कृतियों, वनस्पतियों,
जीवों, युद्धों, भोजन और व्यापार
के बारे में उल्लेख
किया गया।
अफ्रीका से भारत के
मालाबार तट तक आने
में उन्हें अहमद इब्न माजिद (ओमानी नाविक) का मार्गदर्शन प्राप्त
हुआ।


वास्को
डी गामा से जुड़ी कुछ रोचक बातें:

  1. इस अभियान का मूल नेतृत्व उनके पिता एस्तेवाओ डी गामा को सौंपा गया था।

  2. चाँद पर एक क्रेटर का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

  3. अपनी दूसरी यात्रा के दौरान उनके बेड़े में 20 सशस्त्र जहाज शामिल थे।

  4. उनके छह पुत्र और एक पुत्री थे।

  5. वास्को डी गामा की मृत्यु 1524 में कोच्चि में हुई थी, जब वह तीसरी बार भारत आए थे। उन्हें पहले सेंट फ्रांसिस चर्च में दफनाया गया था, लेकिन 14 वर्षों के बाद उनके पुत्र ने उनकी अस्थियाँ पुर्तगाल ले जाकर पुनः दफनाया।


तस्वीरों
की झलकियां:

📍 रोज़ स्ट्रीट,
फोर्ट कोच्चि में वास्को होमस्टे
🛏️
वास्को होमस्टे का आरामदायक कमरा
🏊
होमस्टे के स्विमिंग पूल
का दृश्य
🕊️
सेंट फ्रांसिस चर्च में वास्को
डी गामा की समाधि
पर जुटे पर्यटक


✍️ लेख और
फ़ोटोग्राफ़्स:
अशोक करन
👉
अगर आपको यह पोस्ट
पसंद आई हो, तो
लाइक, शेयर और सब्सक्राइब करना भूलें!

#TravelWithHistory #HeritageWalk #ExplorerLegacy
#IndiaThroughMyLens #AshokKaranWritings #BlogOnIndia

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *