चमक
की अनदेखी कीमत: भारत में अभ्रक खनन
#MicaMining #ChildLaborAwareness, ashokkaran.blogspot.com
प्रस्तावना:
कई वर्षों से भारत अभ्रक
(माइका) का एक प्रमुख
उत्पादक रहा है — यह
खनिज अपनी गर्मी प्रतिरोधकता
और चमक के लिए
जाना जाता है। लेकिन
खदान से बाज़ार तक
की यह यात्रा अक्सर
खतरों से भरी होती
है, खासकर बिहार और झारखंड जैसे
राज्यों में जहाँ अभ्रक
के भंडार हैं।
मानवीय
कीमत:
बहुत पहले एक कार्य
के दौरान जब मैं जंगलों
के भीतर गया, तो
मैंने अभ्रक खनन की कठोर
सच्चाई को स्वयं देखा।
गांवों के लोग — विशेषकर
छोटे बच्चे और महिलाएं — तेज़
धूप में अभ्रक के
टुकड़े खोजते हुए जोखिम भरे
हालात में काम करते
हैं। लंबे समय तक
अभ्रक की धूल में
सांस लेने से फेफड़ों
में सूजन (फाइब्रोसिस), सांस लेने में
कठिनाई, पीठ और मांसपेशियों
में दर्द जैसी गंभीर
स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
आपूर्ति
श्रृंखला पर एक काला साया:
अभ्रक खनन में बाल
श्रम का व्यापक उपयोग
अब भी एक गंभीर
चिंता का विषय है।
यह न केवल बच्चों
को शिक्षा से वंचित करता
है, बल्कि उन्हें दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिमों में भी डालता
है।
पर्यावरणीय
प्रभाव:
अभ्रक खनन स्थानीय पारिस्थितिकी
तंत्र को भी प्रभावित
करता है। यह जंगलों
की कटाई, मिट्टी का कटाव और
जलस्रोतों के प्रदूषण जैसी
समस्याओं को जन्म दे
सकता है — खासकर जब
यह बिना नियमन के
किया जाता है।
परिवर्तन
की पुकार:
हालांकि स्वयं अभ्रक खतरनाक नहीं है, लेकिन
जिस तरह से इसका
खनन किया जाता है,
वह ज़रूर खतरनाक हो सकता है।
सौभाग्यवश, भारत सरकार ने
अवैध खनन पर रोक
लगाने की दिशा में
कुछ सख्त कदम उठाए
हैं।
चमक
के परे:
खतरों के बावजूद, अभ्रक
का उपयोग कई उद्योगों — जैसे
सौंदर्य प्रसाधन और इलेक्ट्रॉनिक्स — में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन यह
ज़रूरी है कि इसके
स्रोत नैतिक हों और मज़दूरों
की सुरक्षा व पर्यावरणीय स्थिरता
को प्राथमिकता दी जाए।
हम
क्या कर सकते हैं:
उपभोक्ता ethically
sourced mica वाले उत्पादों को चुनकर अपनी
भूमिका निभा सकते हैं।
ऐसे ब्रांड्स का चयन करें
जो न्यायसंगत श्रम नीतियों और
ज़िम्मेदार खनन तकनीकों के
लिए प्रतिबद्ध हों।
तस्वीरों
का विवरण:
- बच्चे अपने सिर पर अभ्रक ढोते हुए – 2 तस्वीरें
- एक ग्रामीण युवा दंपत्ति अभ्रक खोदते हुए
- अभ्रक खनन से हुई वनों की कटाई
- अभ्रक खोदते हुए ग्रामीण
- एक खनिक जो अपने शरीर पर उभरे चकत्ते दिखा रहा है
लेख
और फ़ोटो: अशोक करन








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