कोन्हारा घाट पर नेपाली मंदिर की भूली-बिसरी महिमा

 

कोन्हारा
घाट पर नेपाली मंदिर की भूलीबिसरी महिमा


पिछले
दो सप्ताह में पटना में
रहने के दौरान, मैंने
नारायणी और गंगा नदी
के संगम पर स्थित
नेपाली मंदिर के दर्शन करने
का निश्चय किया। ये नदियाँ हिमालय
से निकलकर बाल्मीकि नगर से होते
हुए नेपाल और बिहार में
लगभग 400 किलोमीटर का सफर तय
करती हैं और अंततः
हाजीपुर, बिहार के कोन्हारा घाट
पर संगम बनाती हैं।
इस पवित्र संगम कोसंगम
स्थलकहा जाता है
और इसका गहरा धार्मिक
महत्व है।

इतिहास
की ओर एक पुल

पहले
इस मंदिर तक पहुँचना एक
कठिन कार्य था और इसमें
2-3 घंटे का समय लग
जाता था। लेकिन जेपी
सेतु के निर्माण के
बाद, यह यात्रा काफी
सुविधाजनक हो गई हैअब सोनपुर मात्र
20 मिनट की दूरी पर
है।
वरिष्ठ पत्रकार श्री सुरेंद्र मणपुरी
जी का कहना है
कि नेपाली मंदिर भारत और नेपाल
के बीच सदियों पुराने
सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों
का प्रमाण है। दुर्भाग्यवश, ऐतिहासिक
महत्व रखने के बावजूद
यह मंदिर उपेक्षा का शिकार है।
पुरातत्व विभाग द्वारा इसके संरक्षण का
कोई प्रयास नहीं किया गया
है। मंदिर की जर्जर स्थिति
इसे गंभीर खतरे में डाल
रही है, और यदि
शीघ्र ही इसका पुनरुद्धार
नहीं किया गया, तो
यह धरोहर इतिहास के पन्नों में
सिमटकर रह जाएगी।

अतीत
की यात्रा

मैंने
इस मंदिर की अद्भुत मूर्तियों
के बारे में सुना
था, जो खजुराहो और
कोणार्क की शिल्पकला की
याद दिलाती हैं। उत्सुकता वश,
मैंने इस भूलेबिसरे
स्मारक का दस्तावेजीकरण करने
का निश्चय किया। अपने भतीजे की
सहायता से हम वहाँ
एक घंटे के भीतर
पहुँच गए।

करीब
30 वर्षों बाद जब मैंने
इस मंदिर को देखा, तो
इसके वैभव पर शहरी
विकास का प्रभाव स्पष्ट
था। कभी अकेले खड़ा
यह मंदिर अब विशाल आधुनिक
इमारतों के बीच खो
सा गया है।

हैरान
करने वाली बात यह
थी कि मंदिर पूरी
तरह सुनसान था कोई
श्रद्धालु, ही कोई
पक्षी। लेकिन स्थानीय लोगों से जानकारी मिली
कि सावन, आश्विन और कार्तिक महीनों
में नेपाली श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने
आते हैं, ठीक वैसे
ही जैसे भारतीय श्रद्धालु
नेपाल में पशुपतिनाथ, स्वयम्भूनाथ
और जानकी धाम के दर्शन
करने जाते हैं। यह
परंपरा भारतनेपाल के
साझा आध्यात्मिक संबंधों को और मजबूत
करती है।

नेपाली
मंदिर की विरासत

करीब
170 वर्ष पहले नेपाल के
सुबेदार काजी सुब्बा द्वारा
निर्मित यह मंदिर नेपाल
की प्रसिद्ध पगोडा शैली में बना
है, ठीक वैसे ही
जैसे काठमांडू का पशुपतिनाथ मंदिर।
इस मंदिर का ऐतिहासिक उल्लेख
योगेंद्र मिश्रा की 1960 में प्रकाशित पुस्तक
में भी मिलता है।

यह दोमंजिला संरचना
चार सुंदर नक्काशीदार दरवाजों से सुसज्जित है
और यहाँ शिवलिंग की
स्थापना है। स्थानीय मान्यताओं
के अनुसार, एक बार यह
शिवलिंग चोरी हो गया
था, लेकिन बाद में इसे
पुनः प्राप्त कर लिया गया।
श्री सुरेंद्र मणपुरी जी के अनुसार,
दक्षिणी द्वार से सूरज की
किरणें शिवलिंग पर पड़ती हैं,
जिससे एक अलौकिक दृश्य
उत्पन्न होता है।

कामकला
की कला और आध्यात्मिक चेतना

मंदिर
में प्रवेश करते ही इसकी
अद्भुत नक्काशियों को देखकर मन
अचंभित हो जाता है।
यहाँ उकेरी गई कामकला से
जुड़ी मूर्तियाँ खजुराहो और कोणार्क के
मंदिरों की शैली से
मेल खाती हैं। ओशो
की पुस्तक “From Sex to
Super Consciousness”
के
अनुसार, ये चित्रण भौतिक
इच्छाओं से आध्यात्मिक जागृति
की यात्रा को दर्शाते हैं।

ढहने
की कगार पर मंदिर

इतिहास
और वास्तुकला की इस अनुपम
धरोहर की हालत दिनदिन बिगड़ती
जा रही है। सरकार
ने केवल फर्श की
मरम्मत करवाई है, लेकिन मुख्य
संरचना को अनदेखा किया
गया है। मंदिर की
लकड़ी पर बनी गणेश,
लक्ष्मी, पशुपक्षी, वनस्पति
और अन्य नक्काशियाँ धीरेधीरे नष्ट हो
रही हैं। मंदिर की
छत पर जाने वाली
एकमात्र सीढ़ी बंद कर दी
गई है, जिससे पर्यटक
इसे पास से नहीं
देख सकते।

संरक्षण
की पुकार

पिछले
कई दशकों से इस मंदिर
का जीर्णोद्धार नहीं हुआ है।
यदि इसे ठीक से
संरक्षित किया जाए, तो
यह विश्वभर के पर्यटकों को
आकर्षित कर सकता है,
जिससे पर्यटन से जुड़ी आय
बढ़ेगी और भारतनेपाल
के संबंध और अधिक मजबूत
होंगे। इस मंदिर को
बचाने के लिए सरकार
और विरासत संरक्षण विभाग की तत्काल पहल
आवश्यक है, अन्यथा यह
ऐतिहासिक धरोहर इतिहास के अंधकार में
खो जाएगी।

📸 तस्वीरों में

1️ कोन्हारा
घाट, हाजीपुर स्थित नेपाली मंदिर का विहंगम दृश्य
2️ मंदिर
के जर्जर दरवाजे
3️ वीरान
पड़ा नेपाली मंदिर
4️ नेपाली
मंदिर, हाजीपुर में स्थित शिवलिंग

📷 एवं ✍️ अशोक करन
🔗
ashokkaran.blogspot.com
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