हैंग ग्लाइडिंग: आसमान में रोमांच
ऑस्ट्रेलिया
के न्यूकैसल शहर में मेरवेथर
बीच के पास कुकू
हिल पर, मैं सर्फर्स
की फोटोग्राफी कर रहा था।
ठंडी धूप का आनंद
लेते हुए, मैं अपने
कैमरे से कुछ बेहतरीन
एक्शन शॉट्स कैद करने में
व्यस्त था। मेरे पास
दो कैमरे थे—एक 400mm लंबे
ज़ूम लेंस के साथ
और दूसरा 16-35mm शॉर्ट ज़ूम लेंस के
साथ।
तभी,
अचानक मेरे सिर के
ऊपर से हुश्श की तेज़ आवाज़
गुजरी। मैंने ऊपर देखा, तो
एक पैराग्लाइडर हवा में मंडरा
रहा था। अगली बार
जब वह मेरे पास
से गुज़रा, तो मैं तैयार
था। मैंने कैमरे को हाई–स्पीड मोड में डालकर एक
साथ कई तस्वीरें खींच
लीं। बाद में जब
मैंने उन्हें देखा, तो एक शानदार
शॉट मिला, जिसे मैं अपने
दोस्तों के साथ साझा
करना चाहता था।
ऑस्ट्रेलिया:
खेल प्रेमियों का देश
ऑस्ट्रेलिया
में रहते हुए मैंने
पाया कि स्थानीय लोग,
जिन्हें मज़ाक में ‘कंगारू’ (ऑस्सीज़) भी कहा जाता
है, खेलों को लेकर बेहद
जुनूनी हैं। चाहे स्काईडाइविंग,
सर्फिंग, कयाकिंग, रेसिंग हो या तैराकी,
हर उम्र के लोग—युवा से लेकर
80 साल तक के बुजुर्ग—खेलों में भाग लेते
हैं।
पूरा
देश खेल प्रशिक्षण केंद्रों
से भरा हुआ है।
सिर्फ न्यूकैसल में ही कई
छोटे–बड़े हवाई अड्डे
हैं—एक व्यावसायिक हवाई अड्डा, दूसरा हंटर वैली में और तीसरा
बेलमोंट में, जहां कई
लोग शौकिया उड़ान और स्काइडाइविंग करते नज़र आते
हैं। मैंने एक पुराने विंटेज
बाइप्लेन को भी उड़ते
हुए देखा, जो प्रथम विश्व युद्ध के समय इस्तेमाल
किया जाता था।
हैंग
ग्लाइडिंग का आकर्षण
आसमान
में रोमांच भरने वाले खेलों
में से एक हैंग
ग्लाइडिंग बेहद लोकप्रिय है।
यह एक किफायती एयर
स्पोर्ट है, जिसकी कीमत
लगभग एक SUV कार के बराबर
होती है। हालांकि यह
शुरुआत में थोड़ा चुनौतीपूर्ण
लगता है, लेकिन अभ्यास
के साथ यह आसान
हो जाता है।
हैंग
ग्लाइडर एक गैर–मोटर चालित (non-motorized) हल्का विमान होता है, जिसे
एल्युमीनियम, कार्बन फाइबर और स्टेनलेस स्टील केबल्स से बनाया जाता
है। इसका वजन 45 से
90 पाउंड के बीच होता
है और यह हवा
की धारा पर निर्भर
करता है। पायलट को
सुरक्षा के लिए एक आपातकालीन पैराशूट पहनना अनिवार्य होता है।
तूफान
के समय इस खेल
से बचना चाहिए, लेकिन
हल्की बारिश में यह किया
जा सकता है। टेक–ऑफ आमतौर पर
पहाड़ियों या चट्टानों से किया जाता है,
जो एक अनुभवी प्रशिक्षक
की निगरानी में होता है।
हैंग
ग्लाइडिंग का इतिहास
इस रोमांचक खेल की शुरुआत
1800 के दशक की शुरुआत में जर्मन पायलट अल्ब्रेख्ट लुडविग बर्बलिंगर ने की थी।
इसके बाद 1890 के दशक में एक अन्य जर्मन
एयरोनॉटिकल इंजीनियर ने इसे और
विकसित किया।
आधुनिक
हैंग ग्लाइडर की गति 80 मील
प्रति घंटे तक पहुँच सकती
है, और इसकी ग्लाइडिंग
क्षमता 16:1 होती है। पायलट
अपने शरीर के वजन
को दाएँ–बाएँ झुका
कर दिशा बदलते हैं,
कंट्रोल बार को आगे खींचकर गति बढ़ाते हैं और पीछे
धकेलकर गति कम करते हैं। रात्रि में हैंग ग्लाइडिंग नहीं की जाती क्योंकि सही दिशा–निर्देशन
संभव नहीं होता।
भारत
में हैंग ग्लाइडिंग
अगर
आप भारत में हैंग
ग्लाइडिंग का अनुभव लेना
चाहते हैं, तो कई
प्रशिक्षण और एडवेंचर सेंटर मौजूद हैं। कुछ प्रमुख
स्थान हैं—
📍
पुणे, नासिक, कानपुर, बेंगलुरु, शिमला, मनाली, कालाहारी, चंडीगढ़ और दिल्ली।
यहाँ
10 मिनट की फ्लाइट के लिए शुल्क ₹150 से ₹300 के बीच होता
है (टैरिफ समय के साथ
बदल सकता है)।
हालाँकि, तेज़ हवा के कारण कभी–कभी उड़ान
रद्द भी करनी पड़
सकती है। स्वतंत्र रूप से हैंग ग्लाइडर उड़ाने के लिए पायलट–ग्लाइडर लाइसेंस की आवश्यकता होती है।
दुनिया
भर में यह खेल
तब प्रसिद्ध हुआ जब डेविड
कुक ने 9 मई 1978 को पहली बार
इंग्लिश चैनल को सफलतापूर्वक पार
किया। इसके बाद मोटराइज़्ड
और दो–सीटर ग्लाइडर लोकप्रिय हो गए।
📸 तस्वीर में: ऑस्ट्रेलिया के मेरवेथर बीच पर हैंग ग्लाइडर का एक दृश्य।
✍️ टेक्स्ट और
फोटो: अशोक करन
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