कर्म
पूजा – प्रकृति, भाईचारे और बहनापा का उत्सव
हाल ही में झारखंड
की गलियों में रंग, संगीत
और उल्लास की लहर दौड़
गई है। लाल, सफेद,
हरा और पीले पारंपरिक
परिधानों में सजे युवा
लड़के–लड़कियाँ बड़े उत्साह के
साथ कर्म पूजा (करम पर्व) मना रहे हैं।
यह प्राचीन पर्व, जो झारखंड की
आदिवासी संस्कृति में गहराई से
रचा–बसा है, कर्म
देवता – शक्ति, युवावस्था और जीवन ऊर्जा
के देवता – को समर्पित है।
यह भाई–बहन का
पर्व है, जो समृद्धि,
उर्वरता और परिवार के
अटूट बंधन का प्रतीक
है। भाद्र मास की एकादशी
को मनाया जाने वाला यह
पर्व फसल कटाई के
मौसम से भी जुड़ा
है, जिससे इसका सांस्कृतिक और
कृषक जीवन से गहरा
संबंध बनता है।
अनुष्ठान
और परंपराएँ
• युवाओं
द्वारा जंगल से लकड़ी,
फल और फूल इकट्ठा
किए जाते हैं।
• करम वृक्ष की शाखाएँ गाँव
लाकर उत्सव स्थल पर रोपी
जाती हैं।
• बहनें अपने भाइयों की
लंबी उम्र और सुख–समृद्धि के लिए व्रत
रखती हैं।
• जावा बीज बोए जाते
हैं और उनका पालन–पोषण कर अनुष्ठानों
में उपयोग किया जाता है।
• गाँवों में मंडर, ढोल
और बांसुरी की ध्वनि गूंजती
है, लोग सामूहिक गीत
और नृत्य करते हैं।
भाई–बहन का पर्व
कर्म
पूजा का सबसे भावुक
पहलू भाई और बहन
का रिश्ता है। विवाहित बहनें,
जो ससुराल में रहती हैं,
अपने मायके लौटने के लिए भाइयों
का इंतजार करती हैं। “परलाई
भादो मास, लगलक नैहर
के आस, कबे ऐतक
भइया लयु निहार” जैसे
लोकगीत इस प्रतीक्षा और
प्रेम को गहराई से
व्यक्त करते हैं।
कठिन मौसम और उफनती
नदियाँ भी भाइयों को
बहनों से मिलने से
नहीं रोक पातीं—यह
पर्व उनके अटूट रिश्ते
का प्रमाण है। लाल–सफेद
परिधान और करम फूलों
से सजी महिलाओं का
समूह नृत्य, एकता, प्रेम और समर्पण का
प्रतीक बन जाता है।
प्रकृति
ही सच्चा देवता
कई अन्य पर्वों के
विपरीत कर्म पूजा में
कोई प्रतिमा या विशाल मंदिर
नहीं होता। यहाँ पूजा का
केंद्र स्वयं प्रकृति है—धरती, सूर्य,
बीज और करम वृक्ष
ही श्रद्धा का आधार हैं।
यह पर्व न केवल
सांस्कृतिक बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण
है और “ईश्वर प्रकृति
में है” इस विश्वास
को उजागर करता है।
कर्म
और धर्म की लोककथा
लोककथा
के अनुसार दो भाई थे—कर्म और धर्म।
जब धर्म ने कर्म
का अपमान किया, तो वह अनेक
संकटों में फँस गया।
एक वृद्धा के सुझाव पर
उसने गेहूँ, जौ, चना, मूँग
और उड़द के अंकुरित
बीजों से करम देवता
की पूजा की। उसकी
तपस्या और व्रत से
प्रसन्न होकर करम देवता
ने उसे क्षमा किया
और पीढ़ियों को सम्मान, संतुलन
और प्रकृति के साथ सामंजस्य
का संदेश दिया।
राज्यों
में उत्सव
यह पर्व झारखंड में
सबसे अधिक लोकप्रिय है,
लेकिन बिहार (मगध क्षेत्र), पश्चिम
बंगाल और छत्तीसगढ़ में
भी आदिवासी समुदायों जैसे उरांव, मुंडा
और बैगा द्वारा बड़े
हर्षोल्लास के साथ मनाया
जाता है। हर जगह
ढोल–नगाड़ों, नृत्यों और समृद्धि की
कामना से यह पर्व
धूमधाम से मनाया जाता
है।
यह पर्व केवल अनुष्ठानों
तक सीमित नहीं है, बल्कि
यह हमारी विरासत, पहचान और प्रकृति से
अटूट रिश्ते का उत्सव है।
📸 चित्र: रांची
में कर्म पूजा के
दौरान नृत्य करते युवा
✍️
पाठ और फोटो – अशोक
करन और षष्ठी रंजन
📖
ashokkaran.blogspot.com
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